Menu
blogid : 23100 postid : 1107924

ब्रह्मचारिणी

बिखरे मोती
बिखरे मोती
  • 40 Posts
  • 28 Comments

नवरात्र पर्व के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना का विधान है । ब्रह्मचारिणी का अर्थ है तपस्या का  आचरण करने वाली।

देवी के इस रूप में दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल रहता है।

इस दिन कुछ साधक कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए भी साधना करते हैं ।  इस दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होता है I देवी के इस रूप की आराधना करने से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है।

एक कथा के अनुसार अपने पूर्व जन्म में जब ये हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न हुई थीं, तब नारद के उपदेश से इन्होंने भगवान शंकर जी को प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या की थी I इन्होंने एक हज़ार वर्ष तक केवल फल खाकर व्यतीत किए और सौ वर्ष तक केवल शाक पर निर्भर रहीं । इसके बाद में केवल ज़मीन पर टूट कर गिरे बेल पत्रों को खाकर तीन हज़ार वर्ष तक भगवान शंकर की आराधना करती रहीं।

पत्तों को भी छोड़ देने के कारण उनका नाम ‘अपर्णा’ भी पड़ा। इस कठिन तपस्या के कारण ब्रह्मचारिणी देवी का पूर्वजन्म का शरीर एकदम क्षीण हो गया था। उनकी इस तपस्या से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया था। देवता, ऋषि , सिद्ध गण, मुनि सभी ब्रह्मचारिणी देवी की इस तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताते हुए उनकी सराहना करने लगे। अन्त में पितामह ब्रह्मा जी ने आकाशवाणी के द्वारा उन्हें सम्बोधित करते हुए प्रसन्न स्वरों में कहा- ‘हे देवी । आज तक किसी ने इस प्रकार की ऐसी कठोर तपस्या नहीं की थी। तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी। भगवान चन्द्रमौलि शिव जी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तुम तपस्या से विरत होकर घर लौट जाओ।

दुर्गा का यह दूसरा स्वरूप भक्तों को अनन्त फल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार व संयम की वृद्धि होती है। सर्वत्र सिद्धि और विजय प्राप्त होती है।

नवरात्र के दूसरे दिन शाम के समय देवी के मंडपों में ब्रह्मचारिणी दुर्गा का स्वरूप बनाकर उसे सफेद वस्त्र पहनाकर हाथ में कमंडल और चंदन माला देने के बाद फल, फूल एवं धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करके आरती करने का विधान है।

गृहस्थ इस मन्त्र से मां की पूजा अर्चना कर सकते है

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

इस दिन माता को प्रसन्न करने के लिये शक्कर का भोग लगाया जाता है. इस दिन माता को शक्कर का भोग लगाने से घर के सभी सदस्यों की आयु में बढोतरी होती है.  सेब , केले और श्रीफल और मखाने की खीर  माँ को अर्पित करके प्रसाद के रूप मैं ग्रहण करें I

पूजा में गुडहल के फूल का बड़ा महत्व है

इस दिन ऐसी कन्याओं का पूजन किया जाता है कि जिनका विवाह तय हो गया है लेकिन अभी शादी नहीं हुई है। इन्हें अपने घर बुलाकर पूजन के पश्चात भोजन कराकर वस्त्र, पात्र आदि भेंट किए जाते हैं I

ध्यान मंत्र :-

वन्दे वांच्छितलाभायचन्द्रर्घकृतशेखराम्।

जपमालाकमण्डलुधराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥

गौरवर्णास्वाधिष्ठानास्थितांद्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।

धवल परिधानांब्रह्मरूपांपुष्पालंकारभूषिताम्॥

पद्मवंदनापल्लवाराधराकातंकपोलांपीन पयोधराम्।

कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीनिम्न नाभि नितम्बनीम्॥

स्तोत्र मंत्र :-

तपश्चारिणीत्वंहितापत्रयनिवारिणीम्।

ब्रह्मरूपधराब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥

नवचक्रभेदनी त्वंहिनवऐश्वर्यप्रदायनीम्।

धनदासुखदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥

शंकरप्रियात्वंहिभुक्ति-मुक्ति दायिनी।

शान्तिदामानदा,ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्।

कवच मंत्र :-

त्रिपुरा में हृदयेपातुललाटेपातुशंकरभामिनी।

अर्पणासदापातुनेत्रोअर्धरोचकपोलो॥

पंचदशीकण्ठेपातुमध्यदेशेपातुमहेश्वरी॥

षोडशीसदापातुनाभोगृहोचपादयो।

अंग प्रत्यंग सतत पातुब्रह्मचारिणी॥

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh