- 40 Posts
- 28 Comments
छठवें नवरात्र के दिन देवी दुर्गा के कात्यायनी रूप की पूजा का विधान है I
श्री दुर्गा कवच के चतुर्थ श्लोकानुसार मां दुर्गा की नव शक्तियों में छठी शक्ति का नाम कात्यायनी है I नवरात्रों के छठे दिन माँ के इसी रूप की पूजा एवं अर्चना का महत्व तथा विधान है I
एक पौराणिक कथानुसार महर्षि कात्यायन की इच्छा थी कि भगवती उनके घर में पुत्री के रूप में जन्म लें , अतः इन्होंने भगवती की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की थी I उनके इस तपस्या से प्रसन्न हो कर देवी ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर अश्विन कृष्ण चतुर्दशी को महर्षि कात्यायन के घर में जन्म लिया I जन्म लेने के पश्चात महर्षि कात्यायन ने शुक्ल सप्तमी, अष्टमी और नवमी, तीन दिनों तक देवी की पूजा अर्चना की , अतः महर्षि कात्यायन की पुत्री होने तथा सर्व प्रथम उनके द्वारा पूजित होने के कारण देवी का यह रूप कात्यायनी कहलाया I
वामन पुराण के अनुसार :
एक समय सभी देवता असुरों के अत्याचारों से त्रस्त होकर भगवान विष्णु की शरण में गए तथा उनसे सहायता की गुहार लगाई I तब उस समय विष्णु , शिव एवं ब्रह्मा तथा अन्य देवताओं ने अपने-अपने तेज के अंश से देवी कात्यायनी को उत्पन्न किया I इस देवी का तेज सहस्त्रों सूर्यों के सामान था , देवी के तीन नेत्र ,काले केश और अठारह भुजाएँ थी I देवताओं ने देवी को विभिन्न प्रकार के अस्त्र शस्त्र भेंट किये I तत्पश्चात देवताओं ने देवी कात्यायनी की स्तुति की तथा उनसे असुर राज महिषासुर का वध करने की प्रार्थना की I देवताओं की प्रार्थना स्वीकार कर देवी कात्यायनी ने महिषासुर का वध कर देवताओं को भय मुक्त कर दिया I
ऐसा भी माना जाता है कि भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा यमुना के तट पर की थी। ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
मां कात्यायनी का स्वरूप स्वर्ण के समान चमकीला , अत्यन्त वैभवशाली एवं दिव्य है I अपने इस रूप में देवी अपने प्रिय वाहन सिंह पर विराजमान हैं। इनका एक हाथ अभय मुद्रा में , दूसरा हाथ वरद मुद्रा में तथा अन्य दो हाथों में तलवार तथा कमल का फूल है।
देवी कात्यायनी अमोघ फल देने वाली हैं I इनकी पूजा अर्चना से सभी संकटों का नाश होता है तथा भक्त के भीतर शक्ति का संचार होता है। देवी कात्यायनी अपने भक्तों और उपासकों को अर्थ, धर्म, काम , तथा मोक्ष प्रदान करने वाली हैं I
सर्वप्रथम कलश और उसमें उपस्थित देवी देवताओं की पूजा करें I तत्पश्चात माता के परिवार में शामिल देवी देवताओं की पूजा करें जो देवी की प्रतिमा के दोनों तरफ विराजमान हैं। इनकी पूजा के पश्चात देवी कात्यायनी जी की पूजा की जाती है। मां कात्यायनी की मूर्ति या तस्वीर को लकडी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर स्थापित करें। शुद्ध घी का दीप प्रज्वलित करें I तदुपरांत हाथ में लाल पुष्प लेकर निम्न किसी भी मंत्र द्वारा मां का ध्यान करें :
1. ‘या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान शक्ति – रूपिणी , आपको मेरा बार-बार प्रणाम है।
2 . चन्द्रहासोवलकरा शार्दूलवर वाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥
पूजा के उपरान्त नैवेद्य अर्पण करें I
जो साधक कुण्डलिनी जागृत करने की इच्छा से देवी आराधना में संलग्न है उन्हें दुर्गा पूजा के छठे दिन मां कात्यायनी की सभी प्रकार से विधिवत पूजा अर्चना कर ,मन को आज्ञा चक्र ( ध्यान को दो भौंहों के बीच में केन्द्रित करना ) में स्थापित करने हेतु मां का आशीर्वाद लेना चाहिए और साधना में बैठना चाहिए। इस प्रकार जो साधक प्रयास करते हैं उन्हें भगवती कात्यायनी सभी प्रकार के भय से मुक्त कर उनका परम कल्याण करती है I
रोग निवारण हेतु , भय मुक्ति हेतु तथा ग्रह पीड़ा निवारण हेतु भी देवी कात्यायनी की पूजा करने की मान्यता है I
ऐसी भी मान्यता है कि जिन कन्याओं के विवाह मे विलम्ब हो रहा हो, उन्हें इस दिन माँ कात्यायनी की उपासना अवश्य करनी चाहिए, जिससे उन्हें मनोवान्छित वर की प्राप्ति होती है।
देवी पूजा में निम्न कात्यायनी मंत्र , स्तोत्र एवं कवच का अत्यंत महत्व है :
देवी कात्यायनी मंत्र-
चन्द्रहासोज्जवलकरा शाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
ध्यान वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्त्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना प†वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
स्तोत्र –
कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
कवच-
कात्यायनी मुखं पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥
Read Comments