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दुर्गा नवरात्रों के अन्तिम दिन यानि नवमी के दिन देवी दुर्गा के सिद्धिदात्री रूप की पूजा का विधान है। यह देवी का अंतिम रूप है I
देवी के अन्य आठ रूपों की पूजा उपासना शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार करते हुए भक्त दुर्गा पूजा के नौवें दिन इनकी उपासना में प्रवृत्त होता हैं।
देवी पुराण के अनुसार भगवान शिव ने इनकी कृपा से ही सब सिद्धियों को प्राप्त किया था। इनकी अनुकम्पा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वे लोक में ‘अर्धनारीश्वर’ नाम से प्रसिद्ध हुए।
मार्कंडेय पुराण के अनुसार :
एक बार कैलाशाधिपति भगवान शिव से देवी पार्वती ने पूछा की भगवन आप इतने विराट और अंतहीन कैसे हैं और सभी सिद्धियाँ आप में कैसे निहित हैं I तब शिव ने देवी से कहा देवी आप ही वो शक्ति हैं जो मेरी समस्त शक्तियों का मूल हैं किन्तु पर्वत राज के घर उत्पन्न होने से आपको अपना पूर्व विस्मृत हो गया है , अतः: आप पहले अपने विस्मृत ज्ञान को प्राप्त करें I तब देवी ने शिव से पहले ज्ञान प्राप्त किया जो आगम निगम बने, फिर इनसे से परिपूर्ण हो देवी को अपने वास्तविक स्वरूप का बोध हुआ और देवी सभी सिद्धियों को धारण किये सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में विराजमान हुई,
ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। दुर्गा के इस रूप की इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता है। उपासक या भक्त पर इनकी कृपा से कठिन से कठिन कार्य भी चुटकी में संभव हो जाते हैं। ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य उसमें आ जाती है। हैं। इन सिद्धिदात्री माँ की उपासना पूर्ण कर लेने के बाद भक्तों और साधकों की लौकिक, पारलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है
मां सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। इनका आसन कमल का फूल है। इनकी दाहिनी ओर के ऊपर वाले हाथ में गदा और नीचे वाले हाथ में चक्र है। बाईं ओर के ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प और नीचे वाले हाथ में शंख है।
सिद्धिदात्री देवी का श्रृंगार लाल व पीले वस्त्रों व आभूषणों से ही किया जाता है, लाल व पीले रंग के ही फूल चढ़ाना श्रेष्ठ माना गया है, माता को वस्त्र श्रृंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं,
निम्न मंत्र से मां का ध्यान कर देवी की पूजा करें
या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।
अर्थ : मां सिद्धिदात्री के स्वरूप में सर्वत्र विराजमान देवी मेरा आप को बार-२ नमन
देवी को प्रसन्न करने के लिए नवें नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के तेरहवें अध्याय का पाठ करना चाहिए
पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमशः कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें
कैसे करें मां सिद्धिदात्री की पूजा :
– मां के समक्ष दीपक जलाएं I मां को नौ कमल के फूल अर्पित करें I
– इसके बाद मां को नौ तरह के खाद्य पदार्थ भी अर्पित करें I दूसरों के कल्याण के लिए हवन करें I
– खाद्य पदार्थों से पहले निर्धनों को भोजन कराएं I इसके बाद स्वयं भोजन करें.
देवी की गहन पूजा में विश्वास रखने वाले निम्न मन्त्रों का पाठ भी कर सकते है
ध्यान-
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥
स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्।
शख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धीदात्री भजेम्॥
पटाम्बर, परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदना पल्लवाधरां कातं कपोला पीनपयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां श्रीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
स्तोत्र पाठ-
कंचनाभा शखचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो।
स्मेरमुखी शिवपत्नी सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकारं भूषिता।
नलिस्थितां नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोस्तुते॥
परमानंदमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, सिद्धिदात्री नमोस्तुते॥
विश्वकर्ती, विश्वभती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्व वार्चिता विश्वातीता सिद्धिदात्री नमोस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी।
भव सागर तारिणी सिद्धिदात्री नमोस्तुते॥
धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनी।
मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिद्धिदात्री नमोस्तुते॥
कवच-
ओंकारपातु शीर्षो मां ऐं बीजं मां हृदयो।
हीं बीजं सदापातु नभो, गुहो च पादयो॥
ललाट कर्णो श्रीं बीजपातु क्लीं बीजं मां नेत्र घ्राणो।
कपोल चिबुको हसौ पातु जगत्प्रसूत्यै मां सर्व वदनो॥
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