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लेखक :- अरुण गुप्ता
यूपी के चुनावों की सरगर्मी के बीच बसंत भी अपने पूरे उठान पर है I सुबह की हल्की- हल्की धूप बदन को बहुत भली लग रही थी I बाहर आँगन में बेगम अपने चाय के प्याले के साथ अख़बार का मज़ा ले रही थी I मैं भी अपना चाय का प्याला लेकर आकर कर बैठ गया और क्यारियों और गमलों में खिले रंगबिरंगे फूलों का मजा लेने लगा I
तभी बेगम की आवाज़ हमारे कानों से टकराई, “मियाँ , आजकल आपकी तरफ वाले बड़े बदजुबां हो गए है I”
हमने चौंक कर बेगम की तरफ देखा I उनकी निगाहें हम पर ही टिकी थी I हमें अपनी और टुकुर-टुकुर ताकते हुए देखकर वे बोली, “मियाँ, यहाँ हम दोनों के अलावा कोई तीसरा भी है क्या जो आप हमें इस तरह घूर-घूर कर देख रहे हो ? हमने जो कहा है वो आप से ही कहा है, कुछ समझे !”
हमने कुछ देर तक सोचा और फिर बोले, “बेगम, हमारे अब्बा हुजूर और अम्मी जान तो हमारी शादी के पहले साल में ही खुदा को प्यारे हो गए थे I जो रिश्तेदार ले दे के अब तक बच गए हैं उनमें से किसी में भी आपके सामने मुहँ खोलने का गुर्दा ही नहीं है I हम तो ये सोच रहे थे हमारे खानदान में कौन ऐसा पैदा हो गया जो आपके सामने बदजुबानी कर गया है I”
“मियाँ, सीधे –सीधी क्यों नहीं कहते हो मैं मनहूस हूँ जो तुम्हारे घर में पैर रखते ही तुम्हारे अब्बा हुजूर और अम्मी जान को खा गयी I ताने मारना तो कोई आपसे सीखे I”
“लेकिन बेगम बात तो आप ने ही निकाली थी , हमने तो बस आपकी बात पर बात कही थी I”
“मियाँ , आपसे तो खुदा भी न निपट पाये I” बेगम ने झल्लाते हुए कहा I “आपके खानदान में है कोई ऐसा जो हमारे सामने आकर जबान हिला सके I एक –एक के कारनामे हमें पता हैं , मुआँ कोई मुंह खोल कर तो देखे हमारे सामने? अरे मियाँ , हम आपके खानदान की नहीं बल्कि आपकी पसंदीदा पार्टियों के नेताओं की बात कर रहे है I”
बेगम की बात का इशारा समझ कर हमने कहा, “बेगम कम तो आप वाले भी नहीं हैं ; शुरुआत तो वे ही करते है I”
“हमें मालूम है, आप हमारे खानदान और पसंद वालों की खिलाफत में बोलने का कोई भी मौक़ा नहीं छोड़ सकते हो I मियाँ एक बात बताइये गधों की बात किसने उठाई थी ?”
“बेगम , गधों की बात करने पर क्या कोई रोक है ? मुल्क में बोलने और सोचने की आज़ादी है I कोई चाहे गधे की बात करे या घोड़े की ,किसी को भला कोई एतराज़ क्यों होना चाहिए I”
“मियाँ गुजरात में तो शेर भी मिलते है , उनकी बात तो की नहीं और लगे गधों की बात करने I”
“बेगम अगर मुझे गधा पसंद है तो मैं गधे की बात ही करूंगा , शेर की क्यों करूँ ? फिर शेर कितना हिंसक और खौफनाक होता है I गधा बेचारा एकदम सीधा सादा , अहिंसा का पुजारी , न उधो के लेने में न माधो के देने में I बस अपने काम से काम I”
“अरे मियाँ तुम क्या जानो शेर की खासियत और शख़्सियत I तुम्हारे वाले भला क्या खाकर शेर का मुकाबला करेंगे ?”
“बेगम , यहाँ मुकाबले का सवाल ही कहाँ है I जब शेर को ही अपने गधा होने का शक होने लगे तो इसमें मेरे वालों के लिए करने के लिए बचता ही क्या है ? फिर शेर ने हाथी को ही कहाँ बख्शा है I अरे छेड़छाड़ करने से पहले नतीजे के बारे में भी तो सोच समझ लेना चाहिए I अब भुगतो ! वैसे बेगम हम से ज्यादा अच्छी तरह शेर के बारे में और कौन जानता होगा ?” हमने धीरे से कहा I
“ठीक है मियाँ , मार लो ताने I आप ताने नहीं मारोगे तो क्या अड़ोसी पड़ोसी मारने आयेंगे ? अरे मियाँ वो हमारा ही दम है जो आज घर ठीक तरह से चल रहा है और आप घर में टिके बैठे हो , वरना पता नहीं कहाँ –कहाँ कुनबा परस्ती करते हुए घूमते I”
“बेगम ये तो हम पर आप सरासर झूठा इल्जाम लगा रही हैं I खुदा गवाह है जो हमने आपसे निकाह के बाद किसी और की तरफ निगाह उठा कर भी देखा हो I”
“मियाँ ,देखते तो तब जब हमने देखने दिया होता I अगर देखते तो उसी वक्त आपका मुँह नहीं नोच लिया होता हमने ?”
“तभी तो कहता हूँ बेगम , शेर कितना हिंसक होता है I”
हमारी इस बात पर बेगम ने खा जाने वाली नज़रों से हमें घूर कर देखा I लेकिन फिर अपने नाखूनों को पंजों में दबाकर बोली, “अच्छा ये बताइये यदि किसी ने कह दिया कि उसे किसी ने गोद लिया है तो उसमें किसी को क्या परेशानी?
“ बेगम , कोई किसी की गोद जाए या गोद से आये भला इसमें किसे परेशानी हो सकती है लेकिन एक बात बताइए जिसके यहाँ गोद जाया जा रहा है यदि उसके पास पहले से ही ढेर सारे अपने बच्चे हो तो भला आपको वहां कौन गोद लेगा ?
“मियाँ , आप करोगे वो ही बच्चों वाली बात I हम गोद जा रहे है तो बस जा रहे , हमारी मर्जी I आपको क्यों मिर्च लग रही है ?
“बेगम हमें क्यों मिर्च लगने लगी , हम तो चाहेंगे आप भी जल्दी से जल्दी किसी की गोद चली जाए I”
“मियाँ , हमें आपके इरादों के बारे में हमें सब पता है I आप तो चाहते कब हम इस घर से टलें और कब आप अपनी मन मर्जी करें I लेकिन मियाँ एक बात कान खोल कर सुन लो , हम भी इस घर में कोई भाग कर नहीं आये हैं जो आसानी से चले जाए I आपके मंसूबों को हम आसानी से पूरे नहीं होने देंगे I”
“बेगम , जैसा आपको ठीक लगे करिए I” कहकर हमने हथियार डाल दिए I”
फिर हमने अपने हाथ में पकडे प्याले की ठंडी हो चुकी चाय पर एक नज़र डाली और बेगम से ये पूछते हुए कि बेगम आप चाय पीयेंगी हम चाय बनाने के लिए रसोईघर में जा घुसे I
दोस्तों चाय बनाते हुए हम सिर्फ ग्यारह तारीख की सोच रहे है I इस दिन कुछ गधे घोड़े बन जायेंगे और कुछ घोड़े गधे ; कुछ अपनी मर्जी से किसी की गोद चले जायेंगे और कुछ अपनी मर्जी से गोद गए हुए फिर अपनी पुरानी गोद में लौट जायेंगे लेकिन हमारी किस्मत में तो हमें हर हाल में शेर की माँद में उसके साथ रहना ही लिखा है I
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